त्र्यंबकेश्वर के बारे में
त्र्यंबकेश्वर यह त्रिंबक शहर में एक प्राचीन हिंदू मंदिर है, यह भारत मे महाराष्ट्र राज्य के नासिक शहर से 28 किमी दुर है| यह मंदीर भगवान शिव को समर्पित है और शिवजी के बारह ज्योर्तीलींग मे से एक है| यह स्थल गोदावरी नदी के उद्गम स्थान से भी जाना जाता है जो प्रायद्वीपीय भारत में सबसे लंबी नदी है। गोदावरी नदी को हिंदू धर्म मे पवित्र माना जाता है। जो ब्रम्हगीरी पहाड़ों से निकलके राजमहेंद्रु के पास समुद्र मिलती है। तिर्थराज कुशावर्त को नदी गोदावरी का प्रतीकात्मक मूल माना जाता है और एक पवित्र स्नान जगह के रूप में हिंदुओं द्वारा प्रतिष्ठित है।
सन १९५५-१७६८ में श्री. नानासाहेब पेशवेजी ने यहाँ पर हेमाड पंथी शैली में त्र्यंबकेश्वर मंदिर का निर्माण किया. इस मंदिर का विस्तार, पूर्व-पश्चिम से २७० फिट और दक्षिण-उत्तर से २१७ फीट है. यह मंदिर पूर्वाभिमुख है और चारों बाजुओं से पत्थर की मजबूत दीवारों से घिरा हुवा है. मंदिर के सर्वोच्च शिखर पर पांच स्वर्ण कलश है. और पंचधातु से बना केसरिया ध्वज है. मंदिर के अन्दर प्रवेश करते ही आप को विप्रों द्वारा किया जा रहा मन्त्र पठन सुनाई देता है. यह वातावरण अत्यंत धार्मिक एवम् आनंददाई होता है. मंदिर के गर्भ गृह में शिव जी का पिंड है. उस पिंड के मध्य में अंगूठे के आकार के तीन उभार है. उन्हें ब्रम्हा, विष्णु और महेश के नाम से जाना जाता है. उन में से महेश के उभार से निरंतर गंगा जल रिसता रहता है.
पेशवे जी ने मंदिर को रत्नजडित स्वर्ण मुकुट भेट किया था. उस मुकुट को हर सोमवार मंदिर के विश्वस्त कार्यालय में देखा जा सकता है. मंदिर के पास भगवान् शिवजी का पंचमुखी मुखौटा है. उसे हर सोमवार के दिन और महाशिवरात्रि के दिन पालकी में रख कर कुशावर्त तीर्थ में स्नान के लिए ले जाया जाता है. और उस के बाद उस मुखौटे को बड़े सन्मान से शिवजी के पिंड के ऊपर विराजमान किया जाता है.
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शिवस्वरुप ब्रम्हागिरी
ब्रम्हागिरी पर्वत समुद्र सतह से ४२४८ फीट और त्र्यंबकेश्वर ग़ाव से १८०० फीट ऊंचाई पर है. पर्वत के पांच शिखरों को सद्योजात, वामदेव, इशान, हापरे और तत्पुरुष इन नामों से जाना जाता है. सन १९०८ में श्री लालचंद नशिदानंद भांगडी और श्री सेठ गणेशदास देविदास गज्जर इन दो पंजाबी भाइयो ने २ लाख रुपये खर्च कर के ५०० सीडीया और भक्त गण के लिये धर्मशाला का निर्माण किया. यादव काल मी ब्रम्हगिरी पर्वत को गिरी दुर्ग नाम से जाना जाता था. यह यादवों का गिरी दुर्ग सन १७५० में निजाम के कब्जे में था. और बाद में इसे शाहजहाँ ने काबिज कर लिया. पेशवे काल में इस कीले की हालत बहुत अच्छी हुवा करती थी. इसी ब्रम्हागिरी पर गौतमी और वैतारना इन नदियों का उद्गम स्थान है.
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गंगाद्वार
ब्रम्हागिरी पर्वत पर्वत के बीचो बीच गंगाद्वार स्थित है. इ.स. १९०७ से १९१८ के दरमियाँ, कच्छ के रहिवासी, सेठ करमासी हंसराज इन्होने गंगाद्वार के लिए ७५० पत्थर की सीडियों और पदपथ का निर्माण किया. पर्वत पर गोरक्षनाथ गुफा में गौतम ऋषि ने निर्माण किये हुवे १०८ शिवलिंग मौजूद है.
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वराह कुंड
पाताल लोक में हिरण्याक्ष नमक दैत्य रहेता था जिस से समस्त लोक भयभीत थे. उस हिरण्याक्ष का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने वराह अवतार धारण किया. और उस के वध के पश्चात् उन्होंने इस कुंड में स्नान किया. और इस तरह यह कुंड का वराह कुंड के नाम से प्रसिद्ध्ह हुवा.
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गोरक्षनाथ गुफ़ा
यह गुफ़ा का नाम श्री गोरक्षनाथ जी के नाम से पड़ा है. गोरक्षनाथ जी ग्यारहवी सदी के प्रभावी व्यक्तियों में से एक थे. उन्हों ने स्थापना की. उन्हों ने अपनी साधना से भक्ति युग का निर्माण किया. उन्हों ने अपने प्रभावी वक्तित्व से अंधश्राद्ध और गलत रीती रिवाजों के खिलाफ जन जागरण किया. गोरक्ष नाथ जी ने अपनी समाधी के समय अपने नाथ पंथ की धरोहर को संत श्री निवृत्ति नाथजी को सौप दी.
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संत निवृत्ति नाथ समाधी मंदिर
संत निवृत्ति नाथ जी का समाधी स्थल भी त्र्यंबकेश्वर में स्थित है. निवृत्ति नाथ जी नाथ पंथ के सर्जक थे. वह संत ज्ञानेश्वर जी के अग्रज बंधू थे. पौराणिक कथा के अनुसार संत ज्ञानेश्वर जी के समाधी के तुरंत बाद उन कि बहन मुक्ता के साथ वह तीर्थयात्रा पर करने चले गए. राह में भीषण तूफ़ान में उन्होंने अपनी बहन को खो दिया. उस के कई साल बाद उन्होंने त्र्यबकेश्वर में समाधी ग्रहण की. उनकी समाधी की जगह पर मंदिर बनाया गया है.
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नील पर्वत
नील पर्वत यह टीला ग़ाव की उत्तर की और स्थित है. नील्पर्वत पर माता नीलाम्बिका और माता मटंबा के मंदिर है. जिस में माता की नैसर्गिक मूर्तिया बसी हुई है. और थोडा ऊपर जाने पर भगवान दत्तात्रय का मंदिर है. और उस के पीछे भगवान नीलकंठेश्वर महादेव का मंदिर है. नील पर्वत पर दशनाम पंचायती आखाडा भी है, जो नागा दिगंबर सधुओंका निवास स्थान है.
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गंगा सागर
गंगासागर नाम से गाव में एक बहुत बड़ा तालाब है. जो गाव के रहेवासीयों की पानी की जरूरत पूरी करता है. यह पानी शुद्धीकरण के बाद गाव वालों को उपलब्ध किया जाता है. श्री राजा बहादुर ने इ.स. १६०० में यह तालाब ७५००० रूपये खर्च कर के बनवाया था.
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गौतम तालाब
झाँसी के रहिवासी, श्री पंडित ने ५००० रुपये खर्च कर के इस तालाब का निर्माण किया. यह तालाब ६००० फीट पूर्व-पश्चिम और ४००० फीट उत्तर-दक्षिण में फैला हुआ है.
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इंद्र तालाब
इस तालाब का निर्माण श्री विष्णु महादेव गद्रे जी ने इ.स. १७०० में २२००० रुपये खर्च कर के किया था. इस के बिलकुल बाजु में भगवान इन्द्रेश्वर का मंदिर है. (यह मंदिर पंडित महेंद्र बापूजी धारणे जी के घर के बिलकुल पीछे है.)
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तीर्थराज कुशावर्त
कुशावर्त एक पवित्र तीर्थ है. इस तीर्थ का निर्माण इ.स. १९९०-९१ में इन्दोर के मराठा राज्यकर्ते और होलकर खानदान के श्री रावजी आबाजी परनेकर जी ने ८ लाख रुपये खर्च कर के किया. इस का आकार पूर्व पश्चिम में ९४ फीट और उत्तर दक्षिण में ८५ फीट है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस कुंड में नहाने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है. मृत्यु पश्चात् कैलाश पर्वत पर भगवान शंकर के चरणों में स्थान मिलता है.
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श्री गंगा गोदावरी मंदिर
यह मंदिर कुशावर्त तीर्थ के पास स्थित है. यह मंदिर का निर्माण शुक्ल यजूर्वेदीय ब्राम्हण समाज ने किया है. हर साल के १ से १२ नवम्बर के दरमियाँ गंगा गोदावरी का उत्सव मनाया जाता है.